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छत्तीसगढ़ में अंधविश्वास की 'आग' में जल रही जिंदगी

  रायपुर। छत्तीसगढ़ में टोनही प्रताड़ना अधिनियम-2005 लागू है। इसके बावजूद अंधविश्वास की आग में लोगों की जिंदगी स्वाहा हो रही है। अंधविश्वास ...

 

रायपुर। छत्तीसगढ़ में टोनही प्रताड़ना अधिनियम-2005 लागू है। इसके बावजूद अंधविश्वास की आग में लोगों की जिंदगी स्वाहा हो रही है। अंधविश्वास में लोगों को प्रताड़ित किए जाने, बलि देने, आंख फोड़ने, बच्चों को दागने, गांव से बाहर निकालने जैसी घटनाएं थम नहीं रही हैं। कानून बनने के 19 वर्षों के बाद भी लोग इसे मानने को तैयार नहीं हो रहे हैं। अधिनियम के प्रविधान केवल पुस्तकों तक ही सीमित होकर रह गए हैं। छत्तीसगढ़ में विगत पांच वर्षों में पुलिस थाने तक 54 मामले पहुंचे हैं। 25 मई को ही आदिवासी बाहुल्य बलरामपुर जिले में बलि चढ़ाने के लिए मानसिक रूप से कमजोर एक व्यक्ति ने अपने मासूम बेटे की गला काटकर हत्या कर दी थी। प्रदेश में हर वर्ष इस तरह के 300 से अधिक मामले सामने आ रहे हैं। विगत 10 दिनों के भीतर ही चार-पांच मामले सामने आ चुके हैं। अंधविश्वास को दूर करने के लिए पुलिस और प्रशासन की ओर से लगातार प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन सार्थक हल नहीं निकल पा रहा है। एनसीआरबी की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, छह मौतें मानव बलि से जुड़ी थीं, जबकि 68 हत्याओं का कारण जादू-टोना था। देशभर में जादू-टोने के सर्वाधिक 20 मामले छत्तीसगढ़ में दर्ज किए गए थे। इसके बाद मध्य प्रदेश में 18 और तेलंगाना में 11 दर्ज किए गए थे। छत्तीसगढ़ में अंधश्रद्धा निर्मूलन के लिए काम कर रहे डा. दिनेश मिश्रा ने आरटीआइ के माध्यम में जवाब मांगा था, जिसमें बताया गया था कि वर्ष-2005 से 2017 तक करीब 1,350 मामले दर्ज हुए थे। अंधश्रद्धा निर्मूलन के लिए काम कर रहे डा. दिनेश मिश्रा का कहना है कि कानून भले ही बन गया हो, लेकिन राज्य में अभी भी अंधविश्वास की घटनाएं रुक नहीं रही है। बलि जैसे गंभीर मामले ही पहुंचते है। छोटी-छोटी घटनाएं नहीं पहुंच पाती है। ऐसी घटनाएं ग्रामीणों के सामने होती हैं। इनमें सबकी सहमति होती है, जिस कारण कोई कानूनी कार्रवाई भी नहीं हो पाती है। लोगों को जागरूक करने के लिए विशेष रूप से पर काम करने की आवश्यकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में वरिष्ठों और पंचायत के लोगों को शिक्षित करने होगा। सरकार को इसे पाठ्यक्रम भी सम्मिलित करना चाहिए, जिससे अंधविश्वास को लेकर स्कूली स्तर से ही जागरूकता का काम शुरू हो सके। दुर्ग जिले में आठ मई को एक युवक ने जीभ काटकर एक पत्थर के पास रख दिया था। घटना के बाद युवक लहूलुहान स्थिति में पड़ा था। राहगीरों ने युवक को अस्पताल पहुंचाया। ग्रामीणों ने बताया था कि वह इच्छापूर्ति के लिए भगवान को अपनी जीभ चढ़ाना चाहता था। जशपुर जिले के ग्राम करंगाबहला में एक अप्रैल को 18 दिन की बच्ची को इलाज के नाम पर गर्म लोहे से दागा गया था। बच्ची के शरीर में नस में काला रंग दिखाई देने और पेट फूलने के कारण स्वजन बैगा के पास झाड़फूंक के लिए ले गए थे। बैगा ने बच्ची के शरीर को गर्म लोहे से दाग दिया था। आदिवासी बाहुल्य बलरामपुर जिले में 25 मई को मानव बलि चढ़ाने के लिए मानसिक रूप से कमजोर एक व्यक्ति ने अपने चार वर्षीय पुत्र की गला काटकर हत्या कर दी। उसने दावा किया था कि उसे किसी की बलि देने के लिए कहने वाली आवाजें सुनाई दे रही हैं।

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