सुकमा/कोंटा। सलवा जुड़ूम आंदोलन के बाद बसे मुरलीगुड़ा पंचायत के इतकल गांव में अंधविश्वास की जड़ें इतनी गहरी थीं कि पूरा गांव ही हत्यार...
सुकमा/कोंटा।
सलवा जुड़ूम आंदोलन के बाद बसे मुरलीगुड़ा पंचायत के इतकल गांव में
अंधविश्वास की जड़ें इतनी गहरी थीं कि पूरा गांव ही हत्यारा बन बैठा।
रविवार को इस गांव में राज्य पुलिस बल में पदस्थ प्रधान आरक्षक मौसम
बुच्चा, उनके माता-पिता, पत्नी व बहन सहित पांच सदस्य की हत्या ग्रामीणों
ने ही मिलकर कर दी।
रविवार की सुबह गांव के लोगों के बीच बैठक में
यह तय हुआ कि इस परिवार को ही खत्म कर देना है। इसके बाद गांव के पांच
युवकों को भेजकर पूरे परिवार को जान से मार डाला गया। इस दिल दहला देने
वाले हत्याकांड के बाद भी ग्रामीणों के मन में किसी बात का कोई रंज नहीं
है। ग्रामीण हत्या के बाद साक्ष्य के साथ समर्पण करने कोंटा थाना पहुंचे
थे।
कोंटा मुख्यालय से दस किमी दूर गांव में पहुंचने के बाद बुच्चा
के घर में मातम पसरा हुआ था। बुच्चा की बहन रवली व ममेरी बहन नागी दहाड़े
मार कर विलाप कर रही थी। गांव में पुलिस बल का पहरा था। ग्रामीण अभी भी इस
घर से दूरी बनाए हुए थे। गांव के भीतर हत्याकांड के बाद कोई शोक दिखाई नहीं
दिया। ग्रामीणों को यह भरोसा था कि अब यह गांव आपदा से मुक्त हो जाएगा।
दो वर्ष से गांव में लगातार हो रही थी मृत्यु
इतकल
में हुए दर्दनाक हत्याकांड की जड़ में अशिक्षा और अंधविश्वास कारण है।
दोरला जनजाति बहुल 36 परिवार की इस बस्ती की जनसंख्या लगभग 150 है। गांव
में पिछले दो वर्ष से ग्रामीणों की आकस्मिक मृत्यु हो रही थी। ग्रामीणों ने
बताया कि कि दो वर्ष में लगभग 30 लोगों की बीमारी व अन्य कारण से मृत्यु
हुई है। इसमें भी वर्ष 2023 में अधिकतर लोगों की मृत्यु बुधवार को और 2024
में मंगलवार के दिन हुई।
इस हत्याकांड के पहले लगातार तीन मंगलवार
को गांव में लोगों की मृत्यु हुई थी। इस कारण गांव के लोगों के मन में
धीरे-धीरे मृत्यु का भय बैठना शुरु हाे गया था। बुच्चा की माता बीरी गांव
में वड्डे (झाड़-फूंक करने वाली) का काम करती थी। गांव में यह अफवाह फैलनी
शुरु हो गई कि इस आपदा के पीछे बीरी का हाथ है। वह जादू-टोना कर लोगों को
मार रही है। इस कारण से धीरे-धीरे लोगों में आक्रोश बढ़ने लगा।
शिक्षित नहीं होना बड़ा कारण
इतकल
गांव के अधिकतर लोग अनपढ़ है। पूरे गांव में 25 लोग ही पढ़े-लिखे हैं।
गांव में प्राथमिक स्कूल खोला गया है, पर 13 ही बच्चे पढ़ाई करने आते हैं।
पूरे गांव में चार बच्चों ने दसवीं व आठ ने पांचवीं तक की पढ़ाई की है।
शिक्षित नहीं होने से वे अपनी समस्या का उपचार जादू-टोने या तंत्र-मंत्र से
करने पर भरोसा रखते हैं। यहीं कारण है कि गांव में बीमारी से हो रही
मृत्यु के पीछे भी वे तंत्र-मंत्र को जिम्मेदार मान बैठे।
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