Page Nav

HIDE

Grid

GRID_STYLE

ब्रेकिंग

latest

मध्य प्रदेश की तर्ज पर छत्तीसगढ़ में 'प्रेशर इरिगेशन नेटवर्क' से होगी सिंचाई

  रायपुर। राज्य में मध्य प्रदेश की तर्ज पर ''प्रेशर इरिगेशन नेटवर्क'' तकनीक से सिंचाई होगी। रविवार को मुख्यमंत्री विष्णु देव...

 

रायपुर। राज्य में मध्य प्रदेश की तर्ज पर ''प्रेशर इरिगेशन नेटवर्क'' तकनीक से सिंचाई होगी। रविवार को मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने मध्य प्रदेश के भोपाल में वहां की सिंचाई व्यवस्था का अध्ययन किया। इसके बाद तय किया गया कि मध्य प्रदेश की तर्ज पर छत्तीसगढ़ में सिंचाई प्रणाली अपनाई जाएगी।
अभी पारंपरिक नहर आधारित सिंचाई

अभी पारंपरिक नहर आधारित सिंचाई में पानी का एक बड़ा हिस्सा रिसाव, वाष्पीकरण और अनियंत्रित बहाव के कारण व्यर्थ हो जाता है, जिससे खेतों तक वास्तविक जल आपूर्ति सीमित रहती है और पूरी कमांड एरिया में समान सिंचाई नहीं हो पाती। सामान्यतः पारंपरिक प्रणाली की कुल सिंचाई दक्षता केवल 35 प्रतिशत मानी जाती है।

वहीं दूसरी ओर ''प्रेशर इरिगेशन नेटवर्क'' प्रणाली में पानी पाइपलाइनों के माध्यम से नियंत्रित दबाव के साथ सीधे खेतों तक पहुंचाया जाता है, जिससे पानी का अपव्यय लगभग शून्य हो जाता है। इस तकनीक से सिंचाई दक्षता बढ़कर 65 प्रतिशत से अधिक हो जाती है, जो जल संरक्षण और उत्पादन बढ़ाने दोनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

मुख्यमंत्री साय को मध्य प्रदेश शासन के जल संसाधन विभाग के अपर मुख्य सचिव राजेश राजौरा ने भोपाल में सिंचाई की नवीनतम तकनीक ''प्रेशर इरिगेशन नेटवर्क'' के संबंध में विस्तृत प्रेजेंटेशन दिया। उन्होंने बताया कि पारंपरिक सिंचाई पद्धतियों की तुलना में यह प्रणाली कहीं अधिक कुशल, आधुनिक और जल संरक्षण के अनुरूप है। राजौरा ने प्रस्तुति के दौरान बताया कि जहां पारंपरिक नहर आधारित सिंचाई में लगभग 35 प्रतिशत एफिशिएंसी प्राप्त होती है, वहीं प्रेशर इरिगेशन प्रणाली में दक्षता बढ़कर 65 प्रतिशत तक पहुंच जाती है।
इस तकनीक से कैसे होती है सिंचाई?

''प्रेशर इरिगेशन नेटवर्क'' तकनीक में प्रेशर आधारित पाइपलाइनों से सिंचाई की जाती है, जिससे पानी का रिसाव और अपव्यय कम होता है तथा बिजली की उल्लेखनीय बचत होती है। उन्होंने यह भी बताया कि इस प्रणाली में भू-अधिग्रहण की आवश्यकता न्यूनतम होती है, जिससे परियोजनाएं समय पर और लागत प्रभावी तरीके से पूरी की जा सकती हैं।

मध्य प्रदेश में 13 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में इस तकनीक से सिंचाई की जा रही है और आगामी वर्षों में इसे 40 लाख हेक्टेयर तक विस्तारित करने का लक्ष्य है। इस मॉडल से न केवल जल उपयोग दक्षता बढ़ी है, बल्कि किसानों की उत्पादकता और सिंचाई सुविधा में भी महत्वपूर्ण सुधार देखने को मिला है।

मुख्यमंत्री साय ने प्रेजेंटेशन की सराहना करते हुए कहा कि सिंचाई की यह उन्नत तकनीक जल प्रबंधन की वर्तमान और भविष्य की आवश्यकताओं के अनुरूप है। उन्होंने कहा कि हम इस तकनीक का छत्तीसगढ़ में भी अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करेंगे, ताकि राज्य के किसानों को कम पानी में अधिक सिंचाई सुविधा और बेहतर उत्पादन मिल सके। जल संरक्षण, ऊर्जा बचत और त्वरित क्रियान्वयन के दृष्टिकोण से यह तकनीक अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी। इस तकनीक के माध्यम से भूमि अधिग्रहण किए बिना भी सिंचाई का लाभ मिल सकेगा।

मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने विभागीय अधिकारियों को इस तकनीक के अध्ययन, परीक्षण और चरणबद्ध क्रियान्वयन के लिए दिशा-निर्देश दिए। इस अवसर पर छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव सुबोध सिंह, मध्य प्रदेश जल संसाधन विभाग के प्रमुख अभियंता विनोद देवड़ा, अधीक्षण यंत्री विकास राजोरिया मौजूद रहे।

प्रणाली में सिंचाई पूरी तरह पाइपलाइन आधारित होने के कारण नहर निर्माण की आवश्यकता कम हो जाती है और भू-अधिग्रहण भी न्यूनतम होता है। इससे परियोजनाओं की लागत घटती है और कार्य समय पर पूरे होते हैं। पारंपरिक सिंचाई की तुलना में इस तकनीक में पंपिंग दक्षता अधिक होती है, जिससे बिजली की उल्लेखनीय बचत होती है।

समान दबाव से पानी वितरण होने के कारण खेतों के टेल एंड के क्षेत्रों को भी पर्याप्त पानी मिलता है। इस प्रणाली से फसलों की उत्पादकता में वृद्धि, जल प्रबंधन में सुधार और किसानों की आय में वृद्धि जैसे व्यापक लाभ प्राप्त होते हैं।

No comments