रायपुर। बस्तर में अब बंदूकें नहीं, खेल का मैदान सज रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लाल किले से तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बस्तर ओल...
रायपुर। बस्तर में अब बंदूकें नहीं, खेल का मैदान सज रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लाल किले से तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बस्तर ओलिंपिक में शामिल होकर इस आयोजन के माध्यम से शांति का संदेश देने की कोशिश में हैं। केंद्र और राज्य की मुख्यमंत्री विष्णु देव साय सरकार के तालमेल से बस्तर में माओवादी हिंसा अंतिम चरण में है। यही वजह है कि कभी हिंसा के रास्ते पर चलने वाले कई पूर्व माओवादी अब बस्तर ओलिंपिक में हिस्सा लेकर नई जिंदगी की शुरुआत कर रहे हैं।
यह आयोजन माओवाद प्रभावित युवाओं को मुख्यधारा में जोड़ने और क्षेत्र में विश्वास बहाली का प्रभावी माध्यम बन रहा है। नारायणपुर जिले की पूर्व माओवादी कमला, जो कभी जंगलों में हथियार लेकर दौड़ती थीं, अब रस्साकशी के मैदान में अपना दमखम दिखा रही हैं। कमला कहती हैं कि रस्सी का हर खिंचाव मेरी जिंदगी को नई दिशा देता है।
ऐसे ही 240 पूर्व माओवादी इस खेल में शामिल हैं। जिनके हाथों में बैट, बॉल और बैडमिंटन है। उनकी नजर में यह आयोजन हथियार छोड़कर सम्मानजनक जीवन की ओर पहला कदम है। कुछ यही संदेश देने की कोशिश में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह 13 दिसंबर को जगदलपुर में एक बार फिर शांति का संदेश देंगे। शाह आत्मसमर्पित माओवादियों के माध्यम से अन्य माओवादियों को भी आत्मसमर्पण करने की अपील करेंगे।
रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बस्तर ओलिंपिक की कई मंचों पर सराहना की है। लाल किले से स्वतंत्रता दिवस पर इसका जिक्र किया, वहीं मन की बात कार्यक्रम में इसकी सफलता को विशेष रूप से साझा किया। उन्होंने मुख्यमंत्री विष्णु देव साय सरकार के प्रयासों को प्रेरणादायी बताया। स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों का मानना है कि बस्तर ओलिंपिक की ऐतिहासिक सफलता के पीछे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, मुख्यमंत्री विष्णु देव साय, उप मुख्यमंत्री सह खेल मंत्री अरुण साव और उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा के नेतृत्व की अहम भूमिका है।
खेल मंत्री अरुण साव स्वयं खो-खो, कबड्डी और क्रिकेट के खिलाड़ी रहे हैं। इसलिए खेलों के प्रति उनकी विशेष रुचि है। यही वजह है कि उन्होंने इस बार बस्तर ओलिंपिक को नए आयाम देने के लिए लगातार तैयारियों की मॉनिटरिंग की। इस आयोजन में पांच हजार से अधिक लोग शामिल हो रहे हैं।
बस्तर ओलिंपिक 2025 ने इस वर्ष कई महिलाओं को अपनी जड़ों से दोबारा जुड़ने का अवसर दिया है। कोंटा विकासखंड के दूरस्थ मुरलीगुड़ा गांव की सरोज पोडियाम भी उन्हीं में से एक हैं। शादी और पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते वर्षों तक खेलों से दूर रहीं, लेकिन तीन वर्ष की बच्ची की मां होने के बावजूद उन्होंने फिर से मैदान में वापसी कर सभी को प्रेरित किया। बस्तर ओलिंपिक की शुरुआत ने उन्हें स्कूल के दिनों की खो-खो और कबड्डी की यादें ताजा कर दीं।
सरोज कहती हैं कि गृहकार्य और परिवार के बीच महिलाओं का अधिकांश समय गुजर जाता है, लेकिन इस आयोजन ने उनकी प्रतिभा को फिर से मंच दिया। वर्ष 2009 में माओवादियों ने उनके ससुर की हत्या कर दी थी। इसके बाद शासन ने नवा बिहान योजना के तहत आवास और उनके पति को नगर सैनिक की नौकरी देकर परिवार को संबल दिया।
आज संघर्ष से उभरा यह परिवार खेल के माध्यम से नई उम्मीद की कहानी लिख रहा है। उनकी टीम में नंदिता सोढ़ी, सरिता पोडियामी, लिपिका डे, मुन्नी नाग, ललिता यादव, पुनम भेखर, जसवंती वेट्टी और बण्डी बारसे शामिल हैं, जिन्होंने मिलकर शानदार तालमेल दिखाते हुए संभाग स्तर तक पहुंचने की सफलता हासिल की।
उपमुख्यमंत्री व खेल मंत्री अरुण साव ने बताया कि बस्तर ओलिंपिक 2024 से कई युवा खिलाड़ी उभरकर सामने आए हैं और उनका चयन प्रदेश की विभिन्न खेल अकादमियों में हुआ है। रायपुर हॉकी आवासीय अकादमी में मनीष मौर्य, मनीष वट्टी और अमन नाग ने जगह बनाई, जबकि बिलासपुर बालिका कबड्डी अकादमी में कुमारी लितिका पोयाम और कुमारी मोती कश्यप का चयन हुआ।
पिछले वर्ष चयनित कोंडागांव की कुमारी सुशीला नेताम ने उत्तराखंड में आयोजित नेशनल गेम्स में आर्चरी में कांस्य पदक जीतकर बस्तर का नाम रोशन किया।
इस वर्ष लगभग 121 गांव पहली बार जुड़े, जिनमें सिलगेर, लखापाल और जोनागुडा जैसे संवेदनशील क्षेत्र भी शामिल हैं। करीब 240 आत्मसमर्पित माओवादी और 14 माओवादी हिंसा से दिव्यांग खिलाड़ी भी मैदान में उतरे। दंतेवाड़ा के मुलेर और बीजापुर के पामेड़ जैसे दुर्गम गांवों से भी खिलाड़ी पहुंचे।

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